लेखिका: इंदुमती यार्दी वाचक: विद्या पाटील
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पंधराव्या शतकाच्या ऊत्तरार्धात भारतात आणि विशेषत: महाराष्ट्रात नवविचारांचे मंथन सुरू झाले. समाज धुरिणांनी आपापल्या कुवती व बुद्धीप्रमाणे आपले कार्यक्षेत्र निवडून त्यात परिवर्तन घडवून आणण्यासाठी असामान्य कार्य केले. यातील प्रमुख नेत्यांच्या कार्याची थोरवी या पुस्तकात सांगितली आहे.
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