लेखक: पंकज किशोर अनुवाद: डॉ. कमलेश मेटकर वाचक: विद्या पाटील
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मातीपेक्षाही अवकाशाची ओढ अधिक असणाऱ्या कल्पना चावलाचं अवकाशात स्वच्छंदी पक्ष्याप्रमाणे भरारी घेण्याच स्वप्न होतं. ते एरोनॉटिकल इंजिनिअरींगची पदवी घेतल्यानंतर कोलंबिया अंतराळयानातून साकारलं. सफर यशस्वी झाली पण अवकाशातच अंतर्धान पावली. आकाशाइतकीच प्रेरणादायी असलेली ही कथा!
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