स्मृतिचित्रे
वाचक: विद्या हर्डीकर-सप्रे
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लक्ष्मीबाई टिळक (१८६८-१९३६) यांचे हे आत्मचरित्र. यात आपल्याला त्या काळच्या स्त्री जीवनाचे अतिशय वास्तववादी असे दर्शन तर घडतेच, पण असंख्य हाल-अपेष्टांना त्या ज्या कणखर, सोशिक परंतु प्रसंग पडलाच तर बंडखोरपणाने सामो-या जातात ते वाचून कधी डोळे पाणावतात तर कधी ओठांवर हसू उमटल्याविना राहत नाही. मराठी आत्मचरित्रांमध्ये स्मृतिचित्रांना मोठे मानाचे स्थान सदैव राहील यात काहीच शंका नाही.
खंड १
खंड ३
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लक्ष्मीबाई टिळक (१८६८-१९३६) यांचे हे आत्मचरित्र. यात आपल्याला त्या काळच्या स्त्री जीवनाचे अतिशय वास्तववादी असे दर्शन तर घडतेच, पण असंख्य हाल-अपेष्टांना त्या ज्या कणखर, सोशिक परंतु प्रसंग पडलाच तर बंडखोरपणाने सामो-या जातात ते वाचून कधी डोळे पाणावतात तर कधी ओठांवर हसू उमटल्याविना राहत नाही. मराठी आत्मचरित्रांमध्ये स्मृतिचित्रांना मोठे मानाचे स्थान सदैव राहील यात काहीच शंका नाही.
खंड १
खंड ३
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4 comments:
This is great. Vidyatai, I liked the way you have read Smruti chitre. I would like to participate by reading a book or two.
I cant thank you enough for this.Thank you for keeping Marathi alive.
Khup Khup Chan!!
वाह! ह्या पुस्तकाची ध्वनीफीत ऐकायला मिळेल असे कधी वाटले नव्हते. धन्यवाद.
Yeshwant
Its Really Great Ya pustakamule
tyakalche jeevan kase hote yachi mahiti aaplyala hote.
And really Vidya Hardikar Sapre
yani khup chan Wachle aahe he pustak
great & Thank You
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